हर इन्सान में कहीं न कहीं होता तो है ही संकोच,
दूसरों को ही वोह खुशी देना चाहता है हर रोज़ ,
छिपाता है दूसरों से और सह लेता है ख़ुद दुःख,
बदले में जो भी मिले दुःख या फ़िर सुख।
वह इंसान जो भी हो , होता तो है ही महान,
दूसरों का सोचने वाला वह कर देता है कीर्तिमान।
वह ख़ुद नहीं जानता कितनी तकलीफें आएँगी और,
मदद तो करना ही है सबकी ,चाहे हो इंसान या फ़िर हैवान।
माँ की ममता में भी संकोच छिपा रहता है,
दर्द होता है यदि पुत्र कुछ सहता है।
ममता भी महानता का ही एक रूप लगती है,
यह महसूस करके पुत्र का भी अश्क निकल बहता है।
वह अश्क में क्या क्या छिपा रहता है,
यह तो सिर्फ़ वह पुत्र ही जानता है,
दया,स्नेह,आदि से भरपूर वो अश्क,
जब निकलता है तो कभी नहीं ठहेरता है।
पुत्र की स्थिती देखकर पिता उसे सहानुभूति देता है,
पुत्र सहानुभूति को भो माँ की ममता समझ लेता है,
पिता ,पुत्र और माँ का यह अनूठा रिश्ता,
भगवान् ही तो बाँध कर देता है.