इंतज़ार
खोया हुआ बैठे बैठे करता हूँ मैं इंतज़ार,
बोर होता हूँ लगता है मुझे सबकुछ बेकार,
लगता है वक़्त थम सा गया है सदा के लिए,
बताओ भाई क्या समय का भी होता है व्यापार?
एक क्षण बिताना भी मुश्किल सा हो गया है,
अपने आप को ऐसे देखकर मन क्रोधित सा हो गया है,
कहाँ जाऊं , क्या करूँ, किस्से बात करूँ मैं?
इस दिशा को देखकर मन विचलित सा हो गया है।
किताबों की टेबल और कुर्सी सूनी सी हो गई है,
चेहरे पर इंतज़ार और मन में मासूमियत सी हो गई है,
PET का समय आएगा जब,
तब कहूँगा , उन किताबों की फ़िर से ज़रूरत सी हो गई है।
समय तो चलता है अपनी गति से हर बार,
विश्वास है की वो समय भी आएगा एक बार,
खुशी या ग़म उस समय पता चलेगा,
जब आएगी जीत या फ़िर हार की पुकार।
क्या मालूम आगे क्या होना है?
हँसना है या फ़िर रोना है?
जो होता है अच्छे के लिए होता है,
यह मानके मन को अपने दतोलना है,
महनत का फल अवश्य ही मिलना है ,
तो फ़िर किस बात पर रोना है??
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