Monday, May 4, 2009

मजाक बन गया मैं .

आज मैं आपको अपने बारे में कुछ बता रहा हूँ,
ध्यान एकत्रित करने के लिए कुछ समय मांग रहा हूँ,
माफ़ कीजियेगा अगर मज़ा आए ,
परन्तु उदासी को भी मज़े के साथ बता रहा हूँ

बात थी एक ज़माने की ,
थे हम अकल के कच्चे,
मजाक बनाया हमने ज़िन्दगी का,
क्या करें थे नन्हे बच्चे

आया एक बार शेर मेरे सामने ,
राम राम कह पत्थर उठाकर लगा मैं कांपने,
बलवानों की तरह फेका पत्थर उसकी पीठ पर,
मजाक बन गया मैं जब पता चला की लगा पत्थर कुत्ते की रीढ़ पर

एक बार लग गया मैं नदी में नहाने में,
नहाते नहाते गया जोश गाना गाने में,
आया बहार नदी के पानी में नहाकर,
फ़िर मजाक बन गया मैं जब पता चला आया बहार नाले में छलांग लगाकर

और अजीब और गरीब किस्से आपको मैं बताता हूँ,
तो सुनिए और मज़ेदार किस्से अब मैं फरमाता हूँ

था एक ज़माना मैं घुढ़सवारी कर रहा था,
घोडे पे सवारी करना मज़ा बन गया था,
घोडे वाले की बात सुन कर मैं अचम्भे में पड़ गया था,
क्योंकि गधा सवारी करके मैं गधा बन गया था

उपर लिखे किस्सों से मैं मजाक बन गया था ,
पता नहीं क्यों मेरी नज़रों से मुझे धोखा मिल गया था ?
पता नहीं क्यों हँसी का पात्र बन गया था ?
फ़िर मजाक बन गया मैं जब याद आया की मैं अपना चश्मा लगना भूल गया था

2 comments:

Sid said...

suno suno Vipul k dohe...
itna acha ... humra mann hai mohe...
:)

Vipul Shrivastava said...

Thanks siddhartha, abe bachpan ki pehli mazakia poem thi yaar!!samjha kar!!
:P