Wednesday, January 21, 2009

wake up..

सपने में कोई अपना

सोच में डूबा हुआ मैंने सोचा एक सपना,
था उसमे एक अजीब इंसान कोई अपना,
उसका चेहरा देखने ke लिए मैंने अनेक सहारे लिए,
मेरे ह्रदय ने मुझसे उस वक्त लाखों प्रशन किए .

पुछा मैंने उससे उसका नाम था,
जानना चाह मैंने उसका काम था,
उत्तर देने से पहले चला गया वोह,
खो गया जैसे की कोई आसमान था।

फ़िर आया वोह उसी तरह अगली रात,
की उससे उसदिन मैंने मुलाक़ात,
उत्तर दिया और बहुत समझाया उसने मुझको,
दे गया वोह मेरे दिल को मात .

samajhaya उसने भविष्य के बारे में,
आदेश दिया छोड़ने को भविष्य उसके सहारे में,
बताया उसने की वोह मेरा भविष्य था,
बनाया मुझे उसने अपना शिष्य था।

आँखें खोल दी उसने जाते ही साथ,
चैन मिला उसके शब्दों से उस रात,
अच्छे और बुरे की पहचान आ गई मुझमें,
हो नहीं पाई फिरसे usase मुलाक़ात।

उसने मेरे कर्मों का वर्णन किया था,
मैंने कौनसे कौनसे ग़लत कामों को किया था,
उसने अपनी शिक्षा से शिक्षक का नाम लिया था,
उसने मुझे अच्छा इंसान बना दिया था .

2 comments:

shivin said...

very nice poem vipul

Vipul Shrivastava said...

abe shivin, yaad hai when we were in 10th then we had one chapter Christmas Carol, usi ko padhkar yeh likhi thi!!
Thanks for ur comments!!